श्री अरविन्द के दर्शन का वैदिक आधार सिद्धांत और प्रयोग
जैन धर्म दर्शन के २७ विषयों पर मौलिक शोध–लेख
भृगुवंश मानव के पुरुषार्थ की ऐसी उदात्त गाथा है जो आदि से अंत तक अग्नि से तेजोदीप्त है -
प्रो. नामवर सिंह
संस्कृतटीका तर्कदीपिका तथा लोकप्रिय छात्रोपयोगी मौलिक हिंदी व्याख्यान सहित
महाप्रज्ञ की सारी चिंतन-धारा को ह्रदय-ग्राही बनाने वाला -
श्रीचन्द जी रामपुरिया
परीक्षार्थियो के लिए कल्पवृक्ष तथा आत्मकल्याणर्थियो के लिए प्रामाणिक मार्गदर्शक
वेद विज्ञान में प्रवेश करने के लिए २१ पाठों की एक सरल पाठ्य पुस्तिका
मूल हिंदी से उड़िया में अनुवाद, अनुवादक
डॉ. अच्युतानंद दास
आचार्य दयानंद भार्गव का यह व्याख्यान ब्राह्मण ग्रंथो के वैज्ञानिक एवं दार्शनिक पक्ष को इतनी सहजता से उद्धाटित करता है कि ब्राह्मण ग्रंथो का मर्म पूरी तरह से हृदयंगम हो जाता है -
डॉ. रेणुका राठोड़
प्रसन्न गंभीर शैली में लिखा गया यह भाष्य जहाँ एक और विद्वानों के मनस्तोष का हेतु बनेगा वहाँ साधकों के लिए साधनोपयोगी और जनसामान्य के लिए जीवनोपयोगी सामग्री भी उपलब्ध करायेगा -
आचार्य जुगल किशोर मिश्र, वाराणसी
जीव, ब्रह्म, विश्व, कर्म तथा देवता जैसे गंभीर विषयों का वेद पर आधृत विवेचन
मूल संस्कृत, हिंदी अनुवाद, टिप्पणी तथा अंग्रेजी भूमिका सहित व्योम से सृष्टि के उद्धभव के सिद्धांत का विवेचन
ऋग्वेद के पंद्रह रहस्यात्मक भावपूर्ण सूक्तों का मूल संस्कृत सहित पद्यानुवाद
इस ग्रन्थ में आचार्य भार्गव के वेद चिंतन का जो अमृत रसायन है वह निश्चय ही अन्यत्र अनुपलभ्य है क्योंकि इसका मूल उत्स ही अनितरसधारण है-
आचार्य अभिराज राजेंद्र मिश्र
सामाजिक प्रश्नो एवं परम्परागत चिंतन के परिप्रेक्ष्य में विकास की अवधारणा पर लेख़क के विचार पठनीय और मननीय है -
डॉ. हरिराम आचार्य
यह जैन दर्शन के आधारभूत सिद्धांतो पर अधिकृत रूप से प्रकाश डालता है और आज के परिप्रेक्ष्य में उनकी प्रांसिगकता भी स्पष्ट करता है -
देवर्षि कलानाथ शास्त्री
देव, ब्रह्म, दर्शन, धर्म तथा वेदांग पर १८ शोध निबंधों का संग्लन
पूरे भारत के शिखरस्थ ३५ मनीषियों के समाज एवं राष्ट्र सम्बंधी मौलिक शोध आलेखों का संग्लन। आलेखों का व्यापक फलक वेद, स्मृति, रामायण, महाभारत, गीता, भागवत, श्रेण्य संस्कृत, जैन, बौद्ध, शिक्षा तथा मनोविज्ञान, से लेकर आधुनिक विज्ञान तथा अरविन्द तक फैला है।
संस्कृत के आधुनिक लेखकों पर ३३ लेखों में अन्यत्र दुर्लभ सामग्री विस्तृत प्रस्तावना सहित
It embodies a comprehensive and systematic study of the Jaina view of life in its entirety. It is not only a scholarly contribution to Jaina Studies, but to Indian philosophy in general —
Donald W. Mitchwell
Above all a keen insight and the analytical mode of thinking that Dr Bhargava so well combines, has gone a long way in making this translation and elucidatory notes, that he has so thoughtfully added, both scholarly and useful to any student of Indian Logic in general and the Jaina Logic in particular—
Prof. R.C. Pandey
The oldest commentary on Sankhyakarika rendered into English for the first time. This has been used in the Fourth Volume of Encyclopedia of Indian Philosophies Edited by Geralad
James Larson & Ram Shankar Bhattacharya
Prof. Dayanand Bhargava’s work is a significant contribution to the cause of interpreting Vedic thought in a modern idiom—
Prof. K.V. Ramkrishnamacharyulu
Contains 32 research articles on different aspects of Indology.
Needless to say that this work is very much relevant to the modern times as it propounds a holistic paradigm which is eco-friendly, based on sustainable development which combines peace with prosperity –
Prof Vachaspati Upadhyaya